ग़ज़ल पर ग़ज़ल

ग़ज़ल152

रात काळी पहाड़ सी लागै

सुरेन्द्र पारीक ‘रोहित’

सिरजन री औगत राखिजे

बनवारी ‘खामोश’

ऊगतो सूरज

पवन शर्मा

मिली निजर तो म्हैं घबरायो

प्रदीप शर्मा ‘दीप’

तन सूरज रौ काळौ कित्तौक

पुरुषोत्तम छंगाणी

पगडंडी सड़कां में गुमगी

कल्याण सिंह शेखावत

आफतां बीच अड़ग जीवूं हूं

रामेश्वर दयाल श्रीमाली

मिनख कैवै है कै दिवाळी है

रामेश्वर दयाल श्रीमाली

दया ऊंकी बणी है तो

बुद्धिप्रकाश पारीक

आगे-पाछे मत नाल़ो

पुष्कर 'गुप्तेश्वर'

तकदीरां री बातां अै

अशोक जोशी ‘क्रांत’

थूं तो खुद रै बारै आ

सुशील एम.व्यास

धन रा लोभी बात बदळ दी,

श्रवण दान शून्य

दिवलो बळतो रयो रात भर

श्यामसुन्दर भारती

कई काम रा लूका ई

पुष्कर 'गुप्तेश्वर'

खूब दनां में आया जी

कृष्णा कुमारी ‘कमसिन’

अंतस तणी

रतन सिंह चांपावत

हूँ थारी याद लियां बैठ्यो हूँ

लक्ष्मीनारायण रंगा

सबदां री शमशीर परखजै

रतन सिंह चांपावत

कत्ती गोहरी काळी रात

सवाई सिंह शेखावत

जिनगी में पग-पग रोड़ा

विनोद सोमानी 'हंस'

गजल रै मांय लाय राखूंला

रामेश्वर दयाल श्रीमाली

मती मार तू जोर भाइड़ा

कुलदीप पारीक 'दीप'