पांखी पर कवितावां

पांखी सूं अर्थ अठै उडण

वाळै हर पक्षी सूं है। राजस्थानी री लिखित कविता-जातरा अर लोक सहित्य में पांखी पर विशेष साहित्य मिळै। कठैई इणरो अर्थ आजादी सूं जोड़े तो कठैई जग छोड़ण में। अठै प्रस्तुत कवितावां पांखी सबद रै ओळै-दोळै रचियोड़ी है।

कविता62

पंछी

हरि शंकर आचार्य

निरवाळा रंग

राजूराम बिजारणियां

पांखी री पीड़

भगवती लाल व्यास

भासा रौ भरोसौ

चन्द्र प्रकाश देवल

रंगायेला हेंयार

नीता चौबीसा

मन-सूवटियो

रामनाथ व्यास ‘परिकर’

म्हैं रूंख

कृष्णा आचार्य

लीलटांस

ओंकार श्री

प्रीत-पंखेरू

थानेश्वर शर्मा

उजास रै आंगणै

रतना ‘राहगीर’

जीवड़ा (83)

सुंदर पारख

दो भाव

कन्हैयालाल सेठिया

सुण टीटूड़ी —एक

पृथ्वीराज गुप्ता

थूं तो नीं है

पुनीत कुमार रंगा

चिड़कली

कुमार अजय

काळ

रामस्वरूप किसान

कूक कूक ने कोयळड़ी

प्रियंका भट्ट

अेक जातरू ज्यूं

पुनीत कुमार रंगा

सुवटियो

देवकरण जोशी 'दीपक'

डर

हनुमान प्रसाद 'बिरकाळी'

कोयलड़ी

राजेन्द्र सिंह चारण

सूंपै अेक दीठ

पुनीत कुमार रंगा

वा

अम्बिका दत्त

थिर सत्ता

रतनलाल दाधीच

निज भासा

पवन कुमार राजपुरोहित

जीवता अैनांण

नारायण सिंह भाटी

व्यंग कवितावां

करणीदान बारहठ

कमेड़ी

देवीलाल महिया

पड़ूत्तर

रचना शेखावत

कागला

नवनीत पाण्डे

ओळयूं

गौरी शंकर निम्मीवाल

अटपटू लागे

महेश देव भट्ट

मिनख रा चाळा

इन्द्रा व्यास

पंछी

देवीलाल महिया

रेत रो रुदन

जनकराज पारीक

खोल दी प्रोळ

कमल रंगा

उडतो पछी

शक्तिदान कविया

कुरजां

चैन सिंह शेखावत

काळ (67)

सुंदर पारख

चिड़कली

कान्हा शर्मा

चकवा-चकवी

देवेश पथ सारिया

बिरछ देवता

बाबूलाल शर्मा

चिड़ी हुय जावै फुर्‌र ...

पुनीत कुमार रंगा