कागला री पिछाण,पूछ

फगत सराधां में ईज नीं हुवै

हरेक जीमण-जूठण में

कागला री कांव-कांव सुणीजै

कोई कित्तो ईज

उडावणै भगावणै री चेस्टा करै

कागला घिर-घिर आवै

जीमण माथै मंडरावै

हाथ नीं आवै तो खिंडावै

कणैई पतिया लेवौ-

कागला, कागला हुवै

म्हां कागलां हां

हेला देय देय नै अखरावै।

स्रोत
  • पोथी : नेगचार राजस्थानी ई-पत्रिका ,
  • सिरजक : नवनीत पांडे ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • संस्करण : अंक 26
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