वैवार पर कवितावां

वैवार सबद लोक में सांवठौ

अनै प्रतिबद्ध अर्थ राखै। वैवार सूं लोक रा आचार बणै अर बिगड़ै। अठै प्रस्तुत रचनावां वैवार रै वैवार माथै केन्द्रित है।

कविता127

मार्क्स

शिव बोधि

मारग रौ डर

चन्द्र प्रकाश देवल

मछल्यां

मदन सैनी

कलार

अशोक जोशी ‘क्रांत’

भीष्म

चैन सिंह शेखावत

लगन बावळी

रामदयाल मेहरा

मारग रौ साच

चन्द्र प्रकाश देवल

ओंकार चाय हाळो

मनमीत सोनी

मत कर ऊपरवाड़ो

सत्येन जोशी

जुध री खबरां

नंदकिशोर सोमानी ‘स्नेह'

काळीन्दर नाग

इब्राहिमखाँ सम्मा

जूनी बातां रा जूना ऐहनाण

भवानीसिंह राठौड़ 'भावुक’

म्हूं के बोलूं

अखिलेश्वर

घर

सुधीर राखेचा

मनख-बावळो

प्रीतिमा ‘पुलक’

थूं

सत्येन जोशी

मन रौ बोझ

कल्याणसिंह राजावत

बिदाई री बेळ्यां

सुनीता बिश्नोलिया

गांधी बाबौ

राजेन्द्र बारहठ

आगेरा आंक

कान्ह महर्षि

कवि सिखावण

महावीर प्रसाद जोशी

अहंकार

विनोद सोमानी 'हंस'

रिस्तां री बंधी

मनोज पुरोहित 'अनंत'

जमानो

निशान्त

जागती-जोत

बुद्धरंजन शर्मा

मोब लिंचिंग

चन्द्र प्रकाश देवल

मरवण

ताऊ शेखावटी

जंगळ सूं निकळ

मंगत बादल

चांद रो चितराम

चैन सिंह शेखावत

राजीपो

राणुसिंह राजपुरोहित

बोलणो

दीनदयाल शर्मा

अंध विश्वास रो अन्त

रतना ‘राहगीर’

आप री आप जाणों

अजय कुमार सोनी

इणां रै चायां

विनोद सोमानी 'हंस'

खतरौ घणौ है दुणिया माय

शकुंतला अग्रवाल 'शकुन'

नीसांणी

ठाकुर प्रेमसिंह ऊदावत

हेत प्रीत री हथाई

नाथूसिंह इंदा

अडाणैं रो इतियास

रवि पुरोहित

गांवां री हेल्यां

मोनिका शर्मा

तीन कवितावां

जबरनाथ पुरोहित

घसूल्या

राजेन्द्र गौड़ 'धूळेट'

अनुभवां री लाठी

प्रियंका भट्ट

गरीब

सत्यनारायण ‘सत्य’

मन की गांठ्यां खोल

प्रीतिमा ‘पुलक’