सुवटियो उडग्यो

पींजरो छोड’र

आभै कानीं

जणां पींजरै नैं सजायो

उण मांय दाणां न्हाख्या

अर मधरा गीत गाया

सुवटियो इसो हो

सुवटियो बिसो हो

सुवटियै री याद मांय

झूठ रा आंसू टपकाया।

जद तांई सुवटियो

पींजरै मांय हो

दाणै-दाणै सारू

तरसतो रैयो

तिरस मरतो रैयो

पण

पाणी रो अेक टोपो

नीं मिल्यो सुवटियै नैं।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : देवकरण जोशी 'दीपक' ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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