अेक

खुलै आभै मांय

मुगत उड़तो पंछी

सै सीमावां

सै बंदिसां नैं तोड़'र

पूगावै

सांति अर भायलापणै रो सनेसो

जगत रै छोटै सूं छोटै जीव तांई।

दोय

अै मुगत है

आं नै कोनी चाहीजै

किणी पुळ या उडणखटोळे रो

सायरो

आंनै कोनी बांध सकां

सांप्रदायिकता जात-पांत

अर मिनख रै बणायोडै़

दूजा जाळां मांय।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : हरिशंकर आचार्य ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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