नितूगै

अेक फूठरी चिड़कली

बैठ जावै आय’र

म्हारै डागळै

भोरा भोर

घणी चावना सूं

आंगण नै निहारती

म्हनैं देख’र

पांख्यां फड़फड़ावै

दरद भरिया सुरां में

कीं कैवणो चावै

पण कीं नीं कैय पावै

सिंझ्या हुवतां

फुर्र उड जावै

नीं जाणै कठै?

कठैई थूं तो नीं है?

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : पुनीत कुमार रंगा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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