कुंठा पर कवितावां

कुंठा मानसिक ग्रंथि

अथवा निराशाजन्य अतृप्त भावना या ‘फ़्रस्ट्रेशन’ है। स्वयं पर आरोप में यह ग्लानि या अपराध-बोध और अन्य पर दोषारोपण में ईर्ष्या या चिढ़ का द्योतक भी हो सकता है। मन के इस भाव को—इसके विभिन्न अर्थों में कविता अभिव्यक्त करती रही है।

कविता7

भड़ास

विमला महरिया 'मौज'

म्हारा बाप

तेजसिंह जोधा

म्हारो देवता

सतीश छिम्पा

कतना दन और?

रघुराजसिंह हाड़ा

बाहरा सारा, अन्दर सारा

कुंदन सिंह 'सजल'

अंगरेजणी

बी एल पारस