धूड़ पर गीत

इस चयन में प्रस्तुत

‘कैसी धूल भरी निर्जनता छाई हुई है चारों ओर’ और ‘किसी चीज़ को रखने की जगह बनाते ही धूल की जगह भी बन जाती’ जैसी कविता में व्यक्त अभिव्यक्तियों के साथ ही आगे बढ़ने की सहूलत लें तो धूल का ‘उपेक्षित लेकिन उपस्थित’ अस्तित्व हमें स्वीकार कर लेना होगा। इस संकलन में प्रस्तुत हैं—धूल के बहाने व्यक्त कुछ बेहतरीन कविताएँ।

गीत1

गीत धोरा धरती रौ

शक्तिदान कविया