घर पर कवितावां

महज़ चहारदीवारी को ही

घर नहीं कहते हैं। दरअस्ल, घर एक ‘इमोशन’ (भाव) है। यहाँ प्रस्तुत है—इस जज़्बे से जुड़ी हिंदी कविताओं का सबसे बड़ा चयन।

कविता81

नान्ही कवितावां : आओ सोचां

सुरेन्द्र सुन्दरम

पड़तख गवाह

संजय पुरोहित

घर

सत्यप्रकाश जोशी

म्हारै माथै छात

धनपत स्वामी

मा

कैलाश मंडेला

घर

सुधीर राखेचा

बात बीतगी

राजूराम बिजारणियां

थारै घर की रीत

नैनमल जैन

घर मोढां पर

राजूराम बिजारणियां

जूनौ घर

संजय आचार्य 'वरुण'

खाथो चाल रे

हरीश भादानी

बडेरा

रचना शेखावत

हेलो पाड़ रे

हरीश भादानी

गवर

अर्जुन देव चारण

घर-बेघर

रेणुका व्यास 'नीलम'

रैवास

सीमा भाटी

दिवला अर बाट

अंकिता पुरोहित

अहसास

रवि भट्ट

म्हैं सोचूं

वाज़िद हसन काजी

औळमो

मघाराम लिम्बा

घर

प्रवीण सुथार

लिछमा

कुमार श्याम

तुरपाई करती लुगाई

मदन गोपाल लढ़ा

घर बाबत

नीरज दइया

खुसी रो काळ

निशान्त

थोथा घर

चंद्रशेखर अरोड़ा

सुपनो

सुनील कुमार लोहमरोड़ ‘सोनू’

घर कठै है

अर्जुन देव चारण

म्हारौ बेरौ

धनंजया अमरावत

आंख्यां मांय हंसतौ गांव

गौरी शंकर निम्मीवाल

हेली म्हारी

बी.एल.माली

झूंपड़ा

सुनील कुमार लोहमरोड़ ‘सोनू’

बंटवारो

भगवती लाल व्यास

धन

धनंजया अमरावत

कठै ढोई है

नवनीत पाण्डे

वेचाई ग्यौ छांइलो

राजेश जैन ‘राज’

आंगणो

इरशाद अज़ीज़

बेघर

थानेश्वर शर्मा

घर

हनुमान प्रसाद 'बिरकाळी'

कोई तौ हा

ओम पुरोहित ‘कागद’

सबद : पांच

प्रमोद कुमार शर्मा

रंग बदळता खूणा

राजेन्द्र जोशी

दिवलो

थानेश्वर शर्मा

रठ में ठर

सत्यदीप ‘अपनत्व’

म्हारो दरद

चन्द्रकान्ता शर्मा

मा

प्रियंका भारद्वाज

म्हारो घर

पुनीत कुमार रंगा

ओळख भूल गयो पांच्यो

रामदयाल मेहरा