आं ईंटां रै

ठीक बिचाळै

पड़ी

काळी माटी नीं,

राख है चूल्है री...

जकी ही कालीबंगा में!

कदै’ई चेतन

चुल्लै माथै

कदै’ई तो

सीजतो हो

खदबद खीचड़ो...

कोई तो हा हाथ

जका परोसता

घालता पळियै सूं घी

भैळा जीमता

टाबरां नै।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम
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