ओम पुरोहित ‘कागद’
आधुनिक कविता-जातरा रा सिरैनांव कवि-गद्यकार अर संपादक। भाषा मान्यता आंदोलन रा ठावा सेवग।जबरा चित्रकार ई।
आधुनिक कविता-जातरा रा सिरैनांव कवि-गद्यकार अर संपादक। भाषा मान्यता आंदोलन रा ठावा सेवग।जबरा चित्रकार ई।
आज भळै
अखूट जातरा में
बकरी चढै चकरी
बकरी चढ़ै चकरी
बापड़ा दिन रात
बता बेकळू
भींत है साळ री
भोत अंधारो है
चौखूंटी ऊभ्या म्हे
चावड़ी
छेकड़ली जंग
ढब बादळ
ढिगळी होवण तांई
ढिगळी होवण तांई
धूळ री जाजम
ढूंकी खंख
गूँगलो
है ई कोनीं कोई
इतिहास काळीबंगा रो
जका सोध्या है आज
जे थारै ई है हाथ
कद बचता पंखेरू
कागला पटकै चांच
कविता
खा’र मरग्यो
कोई तो हा हाथ
कोई तौ हा
कूओ
मधरी मधरी राग
माणस रो परस
माटी होवण री जातरा
म्हारो गांव : पांच चितराम
म्हे कुटीजता
मिटाई होसी तिरस
नीं बतावै
ओ म्हारो गांव है
पग
परस रै लारै
पिंड पाळै मन
पिताजी
पिताजी-२
पिताजी-3
प्रीत
राड़ री जड़ बाड़
रेत रो हेत
रोटी में राम बसै
रूंख
सगत रै हाथ बगत
सोवां
थेड़ रै तळै