आप मारग दिखायो

उण माथै

जूण सारू कांटा भोत हा

म्हैं हामळ नीं भरी

उण मारग चालण री!

आगै जावां का लारै

इण दोघड़ चिंत्या में

चींत मगन बगना सा

ऊभ्या हा म्हे चौखूंटी

अचाणचक आप दी

जाड़ भींच फींच में

म्हैं सूंएं माथै

कादै में धड़ांध

थोबी टिकाय दी!

अब

टिक्योड़ा हां

देखां थांरा चाळा

टमरक-टमरक

आप खोद रैया हो

म्हारै साम्हीं खाडा

बांध रैया हो पुळ

हामळियां सारू!

स्रोत
  • पोथी : भोत अंधारो है ,
  • सिरजक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम