ओम पुरोहित ‘कागद’
आधुनिक कविता-जातरा रा सिरैनांव कवि-गद्यकार अर संपादक। भाषा मान्यता आंदोलन रा ठावा सेवग।जबरा चित्रकार ई।
आधुनिक कविता-जातरा रा सिरैनांव कवि-गद्यकार अर संपादक। भाषा मान्यता आंदोलन रा ठावा सेवग।जबरा चित्रकार ई।
जन्म: 05 Jul 1957 | केसरीसिंहपुर,भारत
निधन: 12 Aug 2016
राजस्थानी–हिन्दी रा लूंठा लोक कवि मायड़ भासा रा धाकड़ हिमायती, चित्रकार, वेदमर्मज्ञ, डूंगा पाठक अर सुपाठ्य हस्तलेख रा धणी ओम पुरोहित 'कागद' राजस्थानी रै नूंवै अर अणछप्यै रचनाकारां नै साम्ही ल्यावणवाळा जबरा लिखारा है। कागद रो जलम 5 जुलाई 1957 मांय श्री गंगानगर जिलै रै केसरीसिंहपुर कस्बे में पिता रिदकरण पुरोहित रै आंगणै हुयौ। आपरे बखत रा अपडेट कवि अर प्रयोगधर्मी रचनाकार ओम पुरोहित 'कागद' राजस्थानी साहित्य साधना मांय ओम सूं लैयर व्योम तांई री जातरा करता दिखै। कागद रा पिता रिदकरण पुरोहित राजस्थानी लोक साहित्य रा मर्मज्ञ हा। राजस्थानी लोक कथा बांचणो अर लोक कहावतां गुणगुणावणों इणारो बाळपणे सूं ई सगल रैयो। बाळपणे में ई कागदरी पानड्यां भेळी कर'र जेब में राखण रै कारण नाना श्री तेजमाल बोहरा उणानै कागदियो कैयर बतळावंता। इणी कारण ओम पुरोहित नै बाद में कागद नावं सू जाणीण लागग्यौ।
ओम पुरोहित 'कागद' नै जनकराज पारीक, मोहन आलोक अर करणीदान बारहठ रो सांतरो सानिध्य मिळ्यौ अर कागद से जुड़ाव मायड़ भासा रै मानता खातर चालणवाळे आंदोलन सूं हुयौ। ओ ईज कारण है कै कागज सन 2005 ई मांय भासा मानता खातर निकळी संसार री सैंसू बड़ी राजस्थानी भासा सनमान जातरा रा आगीवाण बण्या। आपरो लिख्योड़ो दस्तावेज 'म्हारी जबान रै ताळों क्यूं? राजस्थानी भासा मानता रौ धिकृत दस्तावेज मानीजै।
सन 1975–76 ई. में कागद री हास्य व्यंग री कवितावां लोकप्रिय हुवण लागगी। सन 1986 ई. आपरो पैलो हिन्दी कविता संग्रै धूप क्यों छेड़ती है' आयो, जिणनै मोकळी सरावणा मिळी। रोजी रोटी खातर कागद राजस्थान पत्रिका दैनिक मांय काम कर्यो। बाद में सन 1985 में
दार्शनिक सोच अर केवणगत री सांतरी अटकळ रै पाण कागद रा अंक सूं अंक बढ़'र 8 कविता संग्रै छप्या, जिणसूं कागद री गिणतगारी राजस्थानी - हिन्दी रा मूर्धन्य रचनाकारां में हुवण लागगी। आपरा सन 1988 ई मांय 'अंतस री बतळ' सन 1992 मांय 'कुचरणी' 'सबद गळगळा' (सन 1994), 'बात तो ही' (2002), 'कुचरण्यां', 'पंचलड़ी', 'आंख भर चितराम' (2009) 'अर भोत अंधारो है' (2015) सिरैनावं कविता संग्रै छप्या। ओम पुरोहित 'कागद' रा हिन्दी में ई धाकड़ कविता संग्रै छप्या। 'धूप क्यों छोड़ती है' रै बाद 'आदमी नहीं है', 'मीठे बोलो की शब्दपरी', 'जंगल मत काटो', 'रंगों की दुनिया', 'सीता नहीं मानी' अर 'थिरकती है तृष्णा' सिरैनांव सूं आपरा लोकचावा कविता संग्रै साम्ही आया। आप 'मरूधरा' पत्रिका रो संपादन ई कर्यौ। राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी बीकानेर री मासिक पत्रिका 'जागती जोत' रो ई ओम पुरोहित 'कागद' कोई दोय बरसां तांई संपादन कर्यो। कवि - चित्रकार ओम पुरोहित री पोथी 'थिरकती है तृष्णा' में रामकिशन अडिंग रा ओपता सबद चितराम पोथी नै पाठकां साम्ही चडूड़ ल्यावै। आपरी 'कालीबंगा' श्रृंखला री कवितावां पुरातत्व, इतिहास अर लोक री गैहरी समझ नै चवड़े करै।
राजस्थान प्रदेस रै उतराधै सींवाड़े मांय पंजाबी रो इधको प्रभाव हुवतां थकां ई ओम पुरोहित 'कागद' 80 रै दसक में राजस्थानी भासा मानता रो धाकड़ आंदोलण खड़यौ कर्यो। आप क्रिकेट रा ई तकड़ा खिलाड़ी अर जाणकार हा। आप राजस्थान क्रिकेट संघ री समिति रा सदस्य ई रैया। आपरी साहित्यिक सेवावां खातर आपनै राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर रो सुधीन्द्र पुरस्कार, राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी, बीकानेर रो गणेसीलाल व्यास पुरस्कार सूंपीज्यौ।
राजस्थानी रै नूंवा अर अणछप्या लिखारा नै आगै ल्यावण खातर सच्चिदानंद हीरानंद अज्ञेय री भांत 'थार सप्तक' री सरूआत ओम पुरोहित 'कागद' री महताऊ उपलब्धि मानीजै। हिन्दी अर राजस्थानी कविता में आपरी गैहरी समझ अर ऑब्जर्वेशन री बानगी देखणजोग है-
'उनकी रसोई में
पकते रहे वे कबूतर
जो हमने कभी
शांति और मित्रता की
तलाश में
में उड़ाए थे।
हम आज भी
शांति और मित्रता की तलाश में है
वे फकत कबूतरों की फिराक में है।'