स्मृति पर कवितावां

स्मृति एक मानसिक क्रिया

है, जो अर्जित अनुभव को आधार बनाती है और आवश्यकतानुसार इसका पुनरुत्पादन करती है। इसे एक आदर्श पुनरावृत्ति कहा गया है। स्मृतियाँ मानव अस्मिता का आधार कही जाती हैं और नैसर्गिक रूप से हमारी अभिव्यक्तियों का अंग बनती हैं। प्रस्तुत चयन में स्मृति को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

कविता128

ओळूं घट की कस्तूरी

प्रेमजी ‘प्रेम’

पिताजी-२

ओम पुरोहित ‘कागद’

म्हारै पुराणियां घर री

मृदुला राजपुरोहित

थेवड़ां री धड़क

मनीषा आर्य सोनी

याद

विजय राही

गाजर रौ सीरो

अनिला राखेचा

नैनी कवितावां

ओंकार श्री

गांव री कांदा-रोटी

मृदुला राजपुरोहित

ओळू

अमर सिंह राजपुरोहित

ओळूं में भासा

चन्द्र प्रकाश देवल

थांरी ओळू

पुनीत कुमार रंगा

ना पृथ्वी रा दोहा बाच्यां ना

योगेश व्यास राजस्थानी

भरकी

मंजू किशोर 'रश्मि'

दुहागण रौ दरद

निर्मला राठौड़

चौमासु (सौमासु)

कैलाश गिरि गोस्वामी

बेटी री ओळू

मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'

सांवळी ओळूवां

मनीषा आर्य सोनी

थूं कठै है

किरण राजपुरोहित 'नितिला'

सुपनो

श्याम महर्षि

गमग्या कठै पिताजी

कैलाश मंडेला

मारू गाम

सतीश आचार्य

कदैई तौ

आईदान सिंह भाटी

पिछाण

रामदयाल मेहरा

दोय चिड़कली

राजदीप सिंह इन्दा

यादां री सौरम

रवि पुरोहित

वा

अम्बिका दत्त

ओळ्यूं

दुष्यन्त जोशी

कागद री नाव

भगवती लाल व्यास

थं की दिन और थमती एमी

पृथ्वी परिहार

ओळूं -दो

रामस्वरूप किसान

प्रेम

राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर'

बाळपणो

राजेन्द्र जोशी

ओळयूं

सन्तोष मायामोहन

ओळूं

सत्येन जोशी

धणक

खेतदान

यादां रो अड़ाव

कृष्ण बृहस्पति

भोळो-भाळो बाळपणो

सुमन पड़िहार

म्हारा हिस्सा को अहसास

हरिचरण अहरवाल 'निर्दोष'

मा'सा

कमल रंगा

आरती

सन्तोष मायामोहन

प्रेम

पवन सिहाग 'अनाम'

कियां हुसी पतियारो

आशीष पुरोहित

हींडो मांडै कुण?

देवीलाल महिया