इयां दिनां

बार-बार

आय रैयी है

हिचकियां

अटक जावै

गळै में पाणी

खांसतौ रैवूं

खासी ताळ

चितारू थांरी बात

कैया करती ही-

थूं

जद-जद आवै हिचकी

पाणी अटकै

तो समझ लिया

म्हैं याद करूं हूँ

थानै...

पण... पण...थूं तो

घणी अळगी गई परी

म्हैं सूं

कै

थारी याद तक नीं पूग सकै

म्हारै तक-

फेर भी चावूं हूँ

हिचकियां आवती रैवे

पाणी अटकतौ रैवे

म्हैं खांसतौ रैवूं

चावै

दम फूलै

चावै

प्राण निसरै

क्यों कै

थारी ओळू

म्हनै

प्राणां सूं घणी प्यारी है।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी
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