मा’सा

नीं...नीं...नीं...
म्हे नीं लड़ां अबै
सुणौ !
मती हुवौ नाराज
नीं मारूंला
म्हैं छोटकी नै
करैला नीं बा म्हारी चुगली
हां...हां...
साच कैवूं-
नीं दड़ी-राड़
नीं राफड़
नीं पथरणा उठावण रो झोड़
रैवां हां अबै
स्याणा-स्याणा
थांरै ही सिखायै सलीकै पाण...

अबै तौ सुणो
सुणो मा’सा!
थांनै टाळ पण 
किणनै सुणावूं
आ बात मा’सा।


म्हारै कनै है मा’सा

म्हैं
कीं जेज सूं जलम्यौ
कै सूंपी ही बेमाता थांनै
कमती उमर मा’सा!

म्हैं नीं जाणूं
पण ओ सांच है
खोस्या हा
म्हां भाई-बैनां रा हक बेमाता
स्यात इण वास्तै
कै म्हारा मा’सा जिसा मा’सा
चाईजै हा सुरगधाम...

खैर!
म्हनै तौ अजेस सुणावै लोरी
करै म्हारा टाव-टेव
संभाळै तीजी पीढ़ी नै ई 
आपरै हेत पाण मा’सा।

सोचती हुवैली बेमाता
है उण कनै
म्हारा मा’सा...
ओ बैम
बेमाता रो अर
ऊंचै आभै बासै वाळै रो
स्यात हुवैला बियां कनै
मा’सा री फगत देही
म्हारै कनै तो है म्हारा मा’सा।

 

बियां रा बियां मा’सा

नीं जाणै क्यूं
लारलै दिनां
हुय जाया करता
रिसाणा मा’सा
बियां रा बियां
जियां हुवता हा
म्हे भाई-बैन!

जद मनावण लागता उणां नैं म्हे
'नीं...नीं...'
पग-पटकी करता
लागता टाबर री गळाईं
मा’सा...

बाऊजी करता
कीं हाथा-जोड़ी
इण बेळा
कीं घणा अकरा हुय जावता
मा’सा!

छेकड़
नानकड़ी बैन
अर म्हारी आंख ढळता आंसू देख
अेकै समचै
हुय जावती छूमंतर
सै रीस-पीड़ मा’सा री
अर बाथां भर लेवता
म्हां बैन-भाई नैं
बियां री बियां मा’सा!

थे मा’सा !

किणी ई चुणौती नै
किणी ई जीवण-अबखायी नै
किण विध
किण धीजै पाण
सुळझाय लेंवता
थे मा’सा!

बाबूजी री
कैवणगत रौ खारोपण
काम पेटै ओळमा सुणावणा
किण ढब
मिठास में ढाळ देंवता हा
थे मा’सा!

म्हां भाई-बैनां री
सै बातां-जिद
सै रोळा-रपटा
किण भांत
चुपचाप निपटाय देंवता
थे मा’सा!

थे-थे ई हा मा’सा!
म्हे उण बगत तौ कांई-
अजेस ई नीं समझ पाया
थांरै जीवण-वैवार रा
अै ऊजळ पख!

म्हे भाई-बैन तो
फगत थांरी ओळूं थाती
अर
देख्यै-भोग्यै थांरै जीवण नै
बस अरथावण री आफळ करां हा
थांरी सूंपी इणी पूंजी पाण।

असल में तो
म्हे नीं समझ सकां
सात जलम ई
थांरी जीवण-पोथी रा साचा अरथ
म्हारा मा’सा!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : कमल रंगा
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