सावणियैं बायरै में खिलतै

मनभावण होंवतै मौसम में

थारो पग दाब'र जावणों

जाणै रुकमा गई परी

मांड री सगळी राग

सगळा सुर साथै लेय’र

अजकाळै म्हारा सुर-संगीत

देस री खेजड़ी नै

भोत अणमणां कर देवै।

थन्नै ओज्यूं खिलणों हो

'मैपल लीफ़' माथै लाल रंग बण'र

सरीर रा गोदणां

मन री पीड़

अणमणै ऊंडै समदर साथै

गावणो हो

जिजीविसारो कोई नूंओ गीत।

थूं की दिन और थमती एमी!

आपां सोधां

नातां में मजबूत डोर

भायलां री रो'ई में

इच्छावां री घाट्यां

खुस्यां रा डब्बां में

अजीब सो दरद बांटता

इण बगत

समाज रो कोई जोड़ भी

होंवतो आपणै सिस्टम में।

थोर डूंगर माथै ऊगता

प्रीत सूं ऊंडै मदवै आळा बिरवा

आपां नूंआं सुर रचता

रुकमा अरणीं गांवती

थारै जैज' री नगरी में

आवणीं ही वसंतरी कई और रुतां।

थूं की दिन और थमती एमी!

स्रोत
  • पोथी : तीजो थार-सप्तक ,
  • सिरजक : पृथ्वी परिहार ,
  • संपादक : ओम पुरोहित 'कागद' ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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