मजूर पर कवितावां

देश-दुनिया में पूँजीवाद

के प्रसार के साथ वंचित-शोषित तबकों के सरोकार को आवाज़ देना कविता ने अपना प्रमुख कर्तव्य स्वीकार किया है। इस क्रम में अर्थव्यवस्था को अपने कंधे पर ढोते मज़दूर पर्याप्त सहानुभूति और प्रतिरोध कोण से देखे गए हैं। इस चयन में मज़दूरों के संवादों-सरोकारों को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

कविता25

भूख अर तिरपति

लालचन्द मानव

मजूर

प्रियंका भारद्वाज

सतरंगी काया

संजय आचार्य 'वरुण'

बरस-जातरा

पारस अरोड़ा

सुवाल

अनिल अबूझ

जागण रौ गीत

सत्यप्रकाश जोशी

कचरो चुगणआळी

प्रियंका भारद्वाज

मजदूर

लालचन्द मानव

कविता

ऋतुप्रिया

सुखसाज

मणि मधुकर

ठौड़

रमेश मयंक

पग मंडणा

रेवतदान चारण कल्पित

ओ कांई करै!

मधु आचार्य 'आशावादी'

हजूर! म्हैं मजूर

भंवरलाल सुथार

किसान अर मजूर

प्रियंका भारद्वाज

मिनख

लालचन्द मानव

गांव री सुबै

नाथूसिंह इंदा

फूलम-कथा

मणि मधुकर

अंगूठो

जयकुमार ‘रुसवा’

भींट

लालचन्द मानव

मजूर

राजेन्द्र बारहठ

सावचेत

राजकुमारी पारीक

जाग मजूरां जाग

लालचन्द मानव

दुख रो कारण

राजकुमारी पारीक