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कहाणी1

छोटी-सी’क चादरड़ी

वो अेक घर मांय सूं नीसर’र दूजै घर मांय बड़्यौ। वा इज मांगण वाळै जिसी गत, “घाल अे माई! कोई ठंडौ-बासी” सूं थोड़ी अलग वीं री टेर, “अरे भाई, कस्सी घर्‌यै है कांई? कस्सी द्यौ यार! पांणी री बारी है।” “कस्सी तौ खेत मांय ई पड़ी है। घरां ल्यायौ ई कोनी। और कोई

मेहरचंद धामू

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