छोटी-सी’क चादरड़ी
वो अेक घर मांय सूं नीसर’र दूजै घर मांय बड़्यौ। वा इज मांगण वाळै जिसी गत, “घाल अे माई! कोई ठंडौ-बासी” सूं थोड़ी अलग वीं री टेर, “अरे भाई, कस्सी घर्यै है कांई? कस्सी द्यौ यार! पांणी री बारी है।”
“कस्सी तौ खेत मांय ई पड़ी है। घरां ल्यायौ ई कोनी। और कोई