मायड़ भासा पर कवितावां

मातृभाषा किसी व्यक्ति

की वह मूल भाषा होती है जो वह जन्म लेने के बाद प्रथमतः बोलता है। यह उसकी भाषाई और विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान का अंग होती है। गांधी ने मातृभाषा की तुलना माँ के दूध से करते हुए कहा था कि गाय का दूध भी माँ का दूध नहीं हो सकता। कुछ अध्ययनों में साबित हुआ है कि किसी मनुष्य के नैसर्गिक विकास में उसकी मातृभाषा में प्रदत्त शिक्षण सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। इस चयन में मातृभाषा विषयक कविताओं को शामिल किया गया है।

कविता70

आ राजस्थानी भाषा है

शक्तिदान कविया

मायड़ भासा

किरण राजपुरोहित 'नितिला'

सबदां री हद रै मांय

आईदान सिंह भाटी

धरती री भासा

कन्हैयालाल सेठिया

सतायोड़ां री भासा

चन्द्र प्रकाश देवल

भासा रौ भरोसौ

चन्द्र प्रकाश देवल

प्रवासी

चन्द्र प्रकाश देवल

मायड़ रो ओलभौ

रामाराम चौधरी

म्हूं वागड़ी

नीता चौबीसा

मिनख वास्ते

सांवर दइया

आपरी मातृभाषा

मूळचंद प्राणेश

आंनै कुण जाणसी

प्रकाशदान चारण

मोटी मरजादण मरुभाषा

गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

मां-भासा

रामस्वरूप किसान

पडूतर

आईदान सिंह भाटी

मायड़

नीलम शर्मा ‘नीलू’

मायड़ भाषा

प्रहलाद कुमावत 'चंचल'

मायड़ भासा

श्रवण दान शून्य

आपां री भाषा

मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'

मायड़ भासा

निशा आर्य

मायड़ री मानता

शंकर दान चारण

भासा

सत्यप्रकाश जोशी

ओळूं में भासा

चन्द्र प्रकाश देवल

गा

मनोज कुमार स्वामी

मायड़ भासा मोवणी

संतोष शेखावत ‘बरड़वा’

व्हाली राजस्थानी

अनुश्री राठौड़

मानिता सारू मूंडो जौवे

दीपा परिहार 'दीप्ति'

सबद नाद

हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

मायड़ भासा

आभा मेहता 'उर्मिल'

मायड़ भोम

हरिदास हर्ष

मॅंझरात

मणि मधुकर

राजस्थानी भाषा

श्यामसुन्दर ‘श्रीपत’

म्हैं भासा हूं

संग्राम सिंह सोढा

रोवै मायड़ आज

मनोज कुमार स्वामी

आपां होवां अेक

दीनदयाल शर्मा

निपाप भासा

चन्द्र प्रकाश देवल

भासा री मौत

जगदीश गिरी

भासा री गत

पूनमचंद गोदारा

उच्छब

मणि मधुकर

अेको करणो पड़सी

राजेन्द्र जोशी

दट कर इधकार दिराणो है

सुआसेवक कुलदीप चारण

ओळखांण

चन्द्र प्रकाश देवल

रगत सूं साख भरै

राजेन्द्र जोशी

पूछे थाणा सब सूं

प्रियंका भट्ट

मीठी मायड़ भासा

निर्मला राठौड़

भाव, आखर अर कविता

महेन्द्र मील