साहित रो सिणगार, मायड़ भाषा मोवणी।

कर कण्ठां रो हार, भाख गरब सूं भायला।

रसवन्ती रस धार, सैत घुळ्योड़ी ओळियां।

हिवड़ै हर्ख अपार, सुणियां बोल्यां भायला।

सबद सबद में सार, जाण ग्यान री गांठड़ी।

भाषां री सिरदार, मायड़ म्हारी भायला।

कूंण करै ला होड़, इण मायड़ री बावळा।

मांडो कर कर कोड़, गीत कवितां भायला।

मांडणियां नै रंग, ग्रंथ इमोलक मोकळा।

साहित नीर अथंग,मल-मल न्हावो भायला।

बोलै आठ करोड़, सबद कोष है नौलखो।

रांको मा'ठ मरोड़, संको मत नीं भायला।

ज़बर भरो हूंकार, लेवण खातर मानता।

एकठ व्है मोट्यार, हाको मांडो भायला।

स्रोत
  • सिरजक : प्रहलाद कुमावत 'चंचल' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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