जद माणस बेजुबान

होज्यै

कितो’क दोरो होज्यै,

सागै चालणों,

साथ निभाणो,

बापड़ै री पीड़ा,

कुण इज कोनी समझै...

जका समझै,

बै आंख्या स्यूं

समझ ल्यै मन गी,

लखदाद है बाँ लिखारा नै

जिका राजस्थानी नै जबान

दिराण री मन मांय

धार राखी है।

स्रोत
  • पोथी : साहित्य बीकानेर ,
  • सिरजक : प्रभुदयाल मोठसरा ,
  • संपादक : देवीलाल महिया ,
  • प्रकाशक : महाप्राण प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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