मायड़ भासा पर दूहा

मातृभाषा किसी व्यक्ति

की वह मूल भाषा होती है जो वह जन्म लेने के बाद प्रथमतः बोलता है। यह उसकी भाषाई और विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान का अंग होती है। गांधी ने मातृभाषा की तुलना माँ के दूध से करते हुए कहा था कि गाय का दूध भी माँ का दूध नहीं हो सकता। कुछ अध्ययनों में साबित हुआ है कि किसी मनुष्य के नैसर्गिक विकास में उसकी मातृभाषा में प्रदत्त शिक्षण सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। इस चयन में मातृभाषा विषयक कविताओं को शामिल किया गया है।

दूहा7

मायड़ भासा रौ मोह

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित

बोली पूजा बौलवा

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित

मायड़ भाषा

राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर'

मायड़भाषा

बाबूलाल शर्मा

मीठा बोले मानवी

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित