चिड़कली आई

अर आंगणा में तावड़ै दियोड़ी

दाळ रै डावै पासै

अर धांन री जीवणी कांनी

उरळी कर्योड़ी ही भासा री वरणामाळ!

दाळ चुग, पूगी डावी कांनी

उण टपोटप दोय दांण

आपरी टूंच वाही

हाल उणरी चूंच में

दाळ रै दांणां रै भेळमभेळ

स्वर रै नांवै 'ई'

अर व्यंजनां रै मांय सूं 'च' इज पूगा हा

के घर री धणियांणी आयगी

वा फुर्र देणी सी उडी

अर सांघणा बिरछां बिचाळै अदीठ व्हेगी!

उण दिन सूं आज लग

उण री भासा री वरणमाळ में

दोय वरण है 'च' अर 'ई'

अेक व्यंजन अर अेक स्वर

अर वा आरै पांण

आज लग बोलै छै आपरी भासा में!

प्रथमी रा गोळा नै अनुस्वार कर बरतती 'चीं-चीं'

कदास उणरौ सबदकोस बडौ नीं व्है

पण अणूंतौ छोटौ कोनीं

वा आपरी आवगी ऊमर री बंतळ

आपरी भासा में करै

जिणनै उणरौ कडूबौ सुणतां समझै।

लिपि नीं तौ नीं री बात

उणरी भासा मर नीं सकै

उणनै पितयारौ छै

नीं वा पोथियां मांडै नीं बांचै

नीं भासा रौ सोच करै!

बस, उणरै नैठाव छै

चिड़ी री बोली

चिड़ी इज बोल सकै

अरथां सूं लकदक...

उणरी भासा में दांणां रा केई नांव छै

पांणी रा

माळा रा विलोम अर आळा रा 'स्लेंग'

आपरी आवगी भासा में

समायोड़ी छै वा

अर उणरै मांय सिमट्योड़ी छै उणरी भासा!

वा तौ नीं जांणै

के उणरी भासा

किणी संविधान री आठवीं पांनड़ी में कोनीं।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : चन्द्रप्रकाश देवल ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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