वृद्धावस्था पर कवितावां

वृद्धावस्था जीवन का

उत्तरार्द्ध है। नीति-वचनों में इस अवस्था में माया से मुक्त होकर परलोक की यात्रा की तैयारी करने का संदेश दिया गया है तो आधुनिक समाजशास्त्रीय विमर्शों में वृद्धों के एकाकीपन और उनकी पारिवारिक-सामजिक उपेक्षा जैसे विषयों पर मनन किया गया है। आत्मपरक मनन में वृद्धावस्था जीवन के जय-पराजय की विवेचना की निमित्त रही है। प्रस्तुत चयन में शामिल कविताएँ इन सभी कोणों से इस विषय को अभिव्यक्त करती हैं।

कविता33

बड़ेरा

बजरंग सिंह चारण

अणसैंधी भूख

गौरी शंकर निम्मीवाल

बूढ़ी डोकरी

पवन सिहाग 'अनाम'

रम, खुसी अर ममत्व

आशीष बिहानी

बडेरा

रचना शेखावत

टसको

विश्वम्भरप्रसाद शर्मा ‘विद्यार्थी’

नी सूझै

मदनमोहन पड़िहार

हेत प्रीत री हथाई

नाथूसिंह इंदा

चोखो भाई चोखो

हरसुख धायल

म्हारा दादो जी

अंकिता पुरोहित

हवेली

रोशन बाफना

दादो करग्या

अशोक परिहार 'उदय'

काळ का साल मं

अम्बिका दत्त

औ ई निवेड़

स्वामी खुसाल नाथ

लालू दादो

चन्द्र प्रकाश देवल

आंधी

हरीश हैरी

कतल

कैलाश मनहर

पिताजी-२

ओम पुरोहित ‘कागद’

रोवणियो जुग

गौरीशंकर प्रजापत

एक हो डोकरो

उमाचरण महमिया

गमग्या कठै पिताजी

कैलाश मंडेला

आयो बुढापो

रेनू सिरोया ‘कुमुदिनी’

जतन

सुनील गज्जाणी

हन्तोक काकी

प्रदीप सिंह चौहान

घट्टी

मुकुट मणिराज

थेवड़ां री धड़क

मनीषा आर्य सोनी

तीन चितराम : बुगचै रै ओळै-दोळै

राजूराम बिजारणियां