जूण पर कवितावां

जहाँ जीवन को स्वयं कविता

कहा गया हो, कविता में जीवन का उतरना अस्वाभाविक प्रतीति नहीं है। प्रस्तुत चयन में जीवन, जीवनानुभव, जीवन-संबंधी धारणाओं, जीवन की जय-पराजय आदि की अभिव्यक्ति देती कविताओं का संकलन किया गया है।

कविता363

काची-पाकी जूण

आशीष पुरोहित

आ दिनां

संदीप 'निर्भय'

पिरोळ में कुत्ती ब्याई

अन्नाराम ‘सुदामा'

सांझ-सुंदरी

महेंद्रसिंह छायण

परेम

अंजु कल्याणवत

सवाल रेखागणित रो

चेतन स्वामी

इण तरै रा सून्याड़ में

भगवती लाल व्यास

अंतस रो दीवो

सुमन बिस्सा

नदी अर मजल

कैलाश कबीर

गांव री कांदा-रोटी

मृदुला राजपुरोहित

डांडी रौ उथळाव

तेजस मुंगेरिया

धुड़कै जूण

राजूराम बिजारणियां

सतिये नै सीख

सत्येन्द्र सिंह चारण झोरड़ा

मिनख री सुतंतरता

रेणुका व्यास 'नीलम'

अरे बुझागड़!

गणेशीलाल व्यास 'उस्ताद'

बदळाव

कृष्ण कल्पित

भड़ास

विमला महरिया 'मौज'

सूरमा

पवन सिहाग 'अनाम'

हरिया रूंख

अंजु कल्याणवत

समाध

सत्यप्रकाश जोशी

जूण

अम्बिका दत्त

काळ

चंद्रशेखर अरोड़ा

कविता

रमेश मयंक

जीवण री जुगत

थानेश्वर शर्मा

रोटी में राम बसै

ओम पुरोहित ‘कागद’

अणबोली बात

विजय राही

ओळियो

आशीष पुरोहित

धणी

पवन सिहाग 'अनाम'

भतूळियौ

शंभुदान मेहडू

बात

सतीश गोल्याण

परभातियै तारै री पौर

नाथूसिंह इंदा

भूख

अनिला राखेचा

पराई भोम

गोरधन सिंह शेखावत

उच्छब

मणि मधुकर

मदारी री सीख

भगवान सैनी

आंकस रै बीं बीज ने

मोहम्मद सदीक

खतावणी

चन्द्र प्रकाश देवल

लोप व्हैण नै ताखड़ौ

चन्द्र प्रकाश देवल

भुरती मिनखाजूण

सुनील गज्जाणी

सींवां सूं बारै तांई

सत्यदेव संवितेन्द्र

वो उमर भर

दिनेश चारण

कोनी भरोसो सबदकोस रो

मदन गोपाल लढ़ा

माटी होवण री जातरा

ओम पुरोहित ‘कागद’

शिव

मीनाक्षी पारीक

जिन्दगी

रमेश मयंक