देह पर कवितावां

देह, शरीर, तन या काया

जीव के समस्त अंगों की समष्टि है। शास्त्रों में देह को एक साधन की तरह देखा गया है, जिसे आत्मा के बराबर महत्त्व दिया गया है। आधुनिक विचारधाराओं, दासता-विरोधी मुहिमों, स्त्रीवादी आंदोलनों, दैहिक स्वतंत्रता की आवधारणा, कविता में स्वानुभूति के महत्त्व आदि के प्रसार के साथ देह अभिव्यक्ति के एक प्रमुख विषय के रूप में सामने है। इस चयन में प्रस्तुत है—देह के अवलंब से कही गई कविताओं का एक संकलन।

कविता15

देही

कमल रंगा

घर मोढां पर

राजूराम बिजारणियां

थळी रा संस्कार

राजूराम बिजारणियां

कीं ठीक नीं

धनपत स्वामी

रट्ठ

राजूराम बिजारणियां

पिंड पाळै मन

ओम पुरोहित ‘कागद’

आतमा रो मोल

गौरीशंकर प्रजापत

प्रेम की दो कूंपळां

हरिचरण अहरवाल 'निर्दोष'

बिरछ

सन्तोष मायामोहन

काया अर म्हैं

संजय आचार्य 'वरुण'

रूप

सत्यप्रकाश जोशी

जीवन रो उनाळो

राजेन्द्र सिंह चारण

सपना

अर्जुन देव चारण

जुद्ध

चन्द्र प्रकाश देवल