देह पर दूहा

देह, शरीर, तन या काया

जीव के समस्त अंगों की समष्टि है। शास्त्रों में देह को एक साधन की तरह देखा गया है, जिसे आत्मा के बराबर महत्त्व दिया गया है। आधुनिक विचारधाराओं, दासता-विरोधी मुहिमों, स्त्रीवादी आंदोलनों, दैहिक स्वतंत्रता की आवधारणा, कविता में स्वानुभूति के महत्त्व आदि के प्रसार के साथ देह अभिव्यक्ति के एक प्रमुख विषय के रूप में सामने है। इस चयन में प्रस्तुत है—देह के अवलंब से कही गई कविताओं का एक संकलन।

दूहा6

मोर मतना टहूक

बस्तीमल सोलंकी भीम

बोली रड़कै बावळा

कैलाशदान कविया

साखियाँ

सुंदरदास जी

दोहा : आडम्बर

जयसिंह आशावत

मिनखा देही पाय कर

सांईदीन दरवेश

जीवण जोबन अंत

बाबूलाल शर्मा