संत काव्य पर दूहा

दूहा66

जल थल महियल ढूंढिया

परमानंद बणियाल

पंथ सोई जो हर पुर जहै

साहबराम राहड़

दान कुपातां दीजियै

साहबराम राहड़

सिर जावे तो जाण दो

संत सुखरामदास

च्यार बरण नर-नार रे

संत सुखरामदास

भौ सागर मन माछला

परमानंद बणियाल

प्रेम बराबर नाहिं तुल

परमानंद बणियाल

जम दाणु क्या देवता

संत सुखरामदास

नांव लियौ जिन सब कियो

साहबराम राहड़

विसनु नाम है सूर हम

ऊदोजी अड़ींग

वन में बसती होय रही

साहबराम राहड़

जामण मरण जहाँ नही

संत सुखरामदास

संगत बिना तो भाव नही

संत सुखरामदास

कर जोड़े कहै केकवी

मेहा गोदारा