प्रेम बराबर नाहिं तुल, जोग जग्य अरू होम।

तारायण सब ही उदै, नहीं समान कोई सोम॥

योग, यज्ञ और होम प्रेम के बराबर उसी प्रकार नहीं तौले जा सकते, जिस प्रकार अनेक तारों का समूह चंद्रमा की बराबरी नहीं कर पाते।

स्रोत
  • पोथी : विश्नोई संत परमानंद बणियाल ,
  • सिरजक : परमानंद बणियाल ,
  • संपादक : ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल ,
  • प्रकाशक : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, भोपाल ,
  • संस्करण : प्रथम
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