दारु पर कवितावां

शराब अल्कोहलीय पेय पदार्थ

है जिसे मदिरा, हाला, सुरा भी कहते हैं। हमारे समाज के अधिकांश हिस्से में शराब को एक बुराई और अनैतिक चीज़ मानते हैं। शराबियों का सम्मान और विश्वास कम ही किया जाता है, बावजूद इसके शराब पीने वालों के लिए इसकी उपस्थिति सुख और दुख दोनों में ही केंद्रीय होती है। साहित्य में इसे अराजकता, बोहेमियन जीवन-प्रवृत्ति, आवारगी के साथ चलने वाली चीज़ माना जाता है। शराब कविता का विषय बहुत शुरू से ही रही है। यहाँ प्रस्तुत है—शराब विषयक कविताओं से एक विशेष चयन।

कविता2

ठावी बात

चन्द्र प्रकाश देवल

आखतौ

मणि मधुकर