लोकतंतर पर कवितावां

लोकतंत्र जनता द्वारा,

जनता के लिए, जनता का शासन है। लोकतंत्र के गुण-दोष आधुनिक समय के प्रमुख विमर्श-विषय रहे हैं और इस संवाद में कविता ने भी योगदान किया है। प्रस्तुत चयन ऐसी ही कविताओं का है।

कविता36

उछाळौ

रेवतदान कल्पित

जागर

मणि मधुकर

कांई मिल्यो!

बी.एल.माली

परजा

अशोक जोशी ‘क्रांत’

मिनख

अनिला राखेचा

डेमोक्रेसी : तीन कवितावां

सुरेन्द्र डी सोनी

लोकराज

मणि मधुकर

जागीरी जुलम

मांगीलाल निरंजन

चुणाव रा दो दरसाव

विक्रमसिंह गून्दोज

चेतावणी

मांगीलाल निरंजन

गणतंत्र नै राम-राम

नन्दकिशोर चतुर्वेदी

क्षणिकावां

राजेंद्र प्रसाद माथुर

अबकै आवजै देखांणी

मीठेश निर्मोही

प्रगति

हरीश व्यास

रोही में परजातंतर

कन्हैयालाल सेठिया

फाटोड़ी जेब

पारस अरोड़ा

सवाल

चेतन स्वामी

लोकराज

राजू सारसर 'राज'

बीह

चन्द्र प्रकाश देवल

प्रजातन्त्र

पूर्ण शर्मा ‘पूरण’

रोळियागट जासी, सुराज आसी

गिरिजा शंकर शर्मा

भौळी जनता

मोहम्मद सदीक

जथारथ री छिब

चन्द्र प्रकाश देवल

बारखड़ी

मणि मधुकर

मिनख

लालचन्द मानव

लोकराज

मोहम्मद सदीक

मारग री पिछांण

चन्द्र प्रकाश देवल

बोल चिड़कली बोल

राजू सारसर 'राज'

मूंन रौ जलमणौ

चन्द्र प्रकाश देवल

अणसुळझी समीकरण

देवीलाल महिया

गणतन्त्र

ब्रज नारायण कौशिक

पांगळो तंत्र

मोनिका गौड़

लोकराज

शिवराज छंगाणी

नेतो

विश्वम्भरप्रसाद शर्मा ‘विद्यार्थी’

धमाळ

ताड़केश्वर शर्मा