लोकराज

तूँ गाज्यो घणो

पण बरस्यो कोनी

जद-कद बरस्यो लाय बरसी

ओळा बरस्या

रोळा बरस्या

अण गिणती रा बोळा बरस्या।

लाम्बै-लाम्बै बाँसां पर

झांसा छरड़ा बाँध’र

ऊंचै स्यूं ऊंचै किनखै नै

ऊपर को ऊपर ही

किणियाँ में उळझाणियाँ

ओछै-मोछै

बावनिये बचकानिये रै

तो तणी ही हाथ को आण दीनी

बागां रा फूल फूसका बणग्या

काची कूंपळ, अध खिली कळी

कोई तरसै पात नै अर कोई तरसै फूल नै।

स्रोत
  • पोथी : जूझती जूण ,
  • सिरजक : मोहम्मद सदीक ,
  • प्रकाशक : सलमा प्रकाशन ,
  • संस्करण : Pratham
जुड़्योड़ा विसै