गणतन्त्र निजरां सूं ऊंचो,

निजरां सूं ईंनै मत नापो,

‘ग’आखर ‘गं’गणपति रूप है,

रिधि सिधि दाता अै गण रुखाळा,

‘ग’स्यूं गांव भारत रो नांव,

‘ग’स्यूं ‘गंगा’पतित पावनी,

‘ग’स्यूं ‘गाय’मय दूध दायनी,

‘ग’स्यूं ‘गोबर’खेत री जिन्दगी,

‘ग’स्यूं ‘गायत्री’महा मन्त्र है,

षड ‘ग’कार निजरां सूं ऊंचा,

‘ण’सरूप ‘कवच’यन्त्र है,

मन वचन ‘साधना’रो तन्त्र है,

‘त’तत्व ‘ज्ञान’स्यूं करै उजाळो,

तम अहम रो दूर भगातो आवै,

‘न्’नाद यूं ‘प्राण’जड़ चेतन रो,

जीवन जन्म मरण नै समझो,

‘त्र’त्राता है सगळी जगती रो

रुखाळो जीव मात्र रो जाणो,

गणतन्त्र निजरां सूं ऊंचो,

गण तन्त्र नजरां सूं ऊंचो।

गण तन्त्र जन मन मैं जोत जगावै।

जीवतात् गणतन्त्र राज्यम्।

स्रोत
  • पोथी : बदळाव ,
  • सिरजक : ब्र. ना. कौशिक / ब्रज नारायण कौशिक ,
  • संपादक : सूर्यशंकर पारीक ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर
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