धर्मनिरपेक्षता पर कवितावां

भारतीय संविधान में विशेष

संशोधन के साथ धर्मनिपेक्षता शब्द को शामिल किए जाने और हाल में सेकुलर होने जैसे प्रगतिशील मूल्य को ‘सिकुलर’ कह प्रताड़ित किए जाने के संदर्भ में कविता में इस शब्द की उपयोगिता सुदृढ़ होती जा रही है। यहाँ इस शब्द के आशय और आवश्यकता पर संवाद जगाती कविताओं का संकलन किया गया है।

कविता6

हीण कुण

प्रहलादराय पारीक

थूं कैयो

नंदकिशोर सोमानी ‘स्नेह'

धर्म

पूनमचंद गोदारा

अणसुळझी समीकरण

देवीलाल महिया

आओ अेकल करां

देवीलाल महिया