सुपना पर कवितावां

सुप्तावस्था के विभिन्न

चरणों में अनैच्छिक रूप से प्रकट होने वाले दृश्य, भाव और उत्तेजना को सामूहिक रूप से स्वप्न कहा जाता है। स्वप्न के प्रति मानव में एक आदिम जिज्ञासा रही है और विभिन्न संस्कृतियों ने अपनी अवधारणाएँ विकसित की हैं। प्रस्तुत चयन में स्वप्न को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

कविता111

आजादी अर सपना

अर्जुनदेव चारण

काची-पाकी जूण

आशीष पुरोहित

मजूर रौ दिन

अर्जुनदेव चारण

घर अर फळसौ

आईदान सिंह भाटी

जे म्हैं आदमी होऊँ

विमला महरिया 'मौज'

म्हारी कविता

आईदान सिंह भाटी

पित्तर सोवै

राजेश कुमार व्यास

म्हारो सुपनों

नरेंद्र व्यास

पांगळा भाई

गोरधन सिंह शेखावत

सोध लीवी पिरथमी

नंद भारद्वाज

बदळाव

निशान्त

हपनं

शैलेन्द्र उपाध्याय

बुढ़ळियौ सूरज

शंभुदान मेहडू

सपना

अर्जुनदेव चारण

मूंन व्हैजा

चन्द्र प्रकाश देवल

चावना

वाज़िद हसन काजी

सतमासिया सपना

कृष्ण बृहस्पति

चांदणी पील्यां

रघुराजसिंह हाड़ा

सवाल (अेक)

गौरीशंकर निमिवाळ

ऊजळी पांखां सूं

सुमन बिस्सा

रेत मांय रळग्यो

मधु आचार्य 'आशावादी'

अन्तस उठ बोल्यो

मोहम्मद सदीक

बा

थानेश्वर शर्मा

खुली आंख रा सुपना

नरेंद्र व्यास

मन नै मारण रो उपाव

प्रिया शर्मा

हेत

सिया चौधरी

म्हैं

सुशीला चनानी

हेत रा रंग

मदन गोपाल लढ़ा

सौळह री उमर

प्रियंका भारद्वाज

छिमा

कृष्णा आचार्य

सुपनो

श्याम महर्षि

काळ-दुकाळ

प्रेमजी ‘प्रेम’

सपना

प्रियंका भारद्वाज

गांधी रो सपनो

राजेन्द्र जोशी

सुपनां

अशोक जोशी ‘क्रांत’

कुंआरी साच?

कन्हैयालाल सेठिया

सपनो

गोरधन सिंह शेखावत

जागर

मणि मधुकर

जात्रा

सतीश छिम्पा

नींद नै बेच'र

मंजू किशोर 'रश्मि'

सपनौ

तेजस मुंगेरिया

बोलै सरणाटो

हरीश भादानी

पतंग अर टाबर

मदन सैनी

बणावणी चावूं

बसन्ती पंवार

अणख

लालचन्द मानव

बाथ-भर आकाश

नन्दकिशोर चतुर्वेदी