सुपना पर कवितावां

सुप्तावस्था के विभिन्न

चरणों में अनैच्छिक रूप से प्रकट होने वाले दृश्य, भाव और उत्तेजना को सामूहिक रूप से स्वप्न कहा जाता है। स्वप्न के प्रति मानव में एक आदिम जिज्ञासा रही है और विभिन्न संस्कृतियों ने अपनी अवधारणाएँ विकसित की हैं। प्रस्तुत चयन में स्वप्न को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

कविता144

आजादी अर सपना

अर्जुनदेव चारण

काची-पाकी जूण

आशीष पुरोहित

जे म्हैं आदमी होऊँ

विमला महरिया 'मौज'

मजूर रौ दिन

अर्जुनदेव चारण

घर अर फळसौ

आईदान सिंह भाटी

म्हारी कविता

आईदान सिंह भाटी

मुरधर रा हीरा

अस्त अली खां मलकांण

सुपनो

सीमा भाटी

डरपणो

चन्द्र प्रकाश देवल

सपनो

हीरालाल शास्त्री

जागण रौ गीत

सत्यप्रकाश जोशी

सूरज नै ढूंढ़ो

भानसिंह शेखावत ‘मरूधर’

हरा सपनां री उडीक

राजेन्द्र जोशी

सुपणो

तुषार पारीक

सिंझ्या

गजेन्द्र कंवर चम्पावत

छोरी

थानेश्वर शर्मा

गवर

अर्जुनदेव चारण

मारग री हूंस

चन्द्र प्रकाश देवल

दुख रो दुख

इन्द्रा व्यास

सुण ओ स्याणां

मणि मधुकर

सुपनो

आशीष पुरोहित

सपनौ

कुमार अजय

हूं म्हैं मिनख

कृष्णा जाखड़

परकत इच्छा

नन्दकिशोर चतुर्वेदी

अंधारै रो हिसाब

अर्जुन अरविन्द

पिंड पाळै मन

ओम पुरोहित ‘कागद’

एक माड़ो सपनो

मदन गोपाल लढ़ा

हिचकी को बुलावो

हरिचरण अहरवाल 'निर्दोष'

म्हारा बछड़िया

कृष्णा आचार्य

आंतरो

गंगासागर सारस्वत

सजा

मोनिका गौड़

दीठ रो फरक

आरती छंगाणी

सुपनो

सुनील कुमार लोहमरोड़ ‘सोनू’

तार-तार सपना

रचना शेखावत

सुपनौ

जनकराज पारीक

मिलण-सिंझ्या

मेघराज मुकुल

गीतां को गेलो

प्रेमजी ‘प्रेम’

सुपना

विनोद स्वामी

अेक माड़ो सुपनो

मदन गोपाल लढ़ा

तू नईं आई

कृष्ण बृहस्पति

सुराज रै खांध

कृष्ण बिश्नोई

कचायत

पूनमचंद गोदारा

म्हारा सपना

महेंद्रसिंह छायण

मुट्ठी भर सुपना

गौतम अरोड़ा