सुपना पर कवितावां

सुप्तावस्था के विभिन्न

चरणों में अनैच्छिक रूप से प्रकट होने वाले दृश्य, भाव और उत्तेजना को सामूहिक रूप से स्वप्न कहा जाता है। स्वप्न के प्रति मानव में एक आदिम जिज्ञासा रही है और विभिन्न संस्कृतियों ने अपनी अवधारणाएँ विकसित की हैं। प्रस्तुत चयन में स्वप्न को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

कविता94

काची-पाकी जूण

आशीष पुरोहित

म्हारी कविता

आईदान सिंह भाटी

जे म्हैं आदमी होऊँ

विमला महरिया 'मौज'

बा

थानेश्वर शर्मा

सोध लीवी पिरथमी

नंद भारद्वाज

बदळाव

निशान्त

हपनं

शैलेन्द्र उपाध्याय

बुढ़ळियौ सूरज

शंभुदान मेहडू

पित्तर सोवै

राजेश कुमार व्यास

सुपनो

सीमा भाटी

डरपणो

चन्द्र प्रकाश देवल

सपनो

हीरालाल सास्त्री

जागण रौ गीत

सत्यप्रकाश जोशी

हरा सपनां री उडीक

राजेन्द्र जोशी

सुपणो

तुषार पारीक

छोरी

थानेश्वर शर्मा

गवर

अर्जुन देव चारण

मारग री हूंस

चन्द्र प्रकाश देवल

सुण ओ स्याणां

मणि मधुकर

सुपनो

आशीष पुरोहित

सपनौ

कुमार अजय

पिंड पाळै मन

ओम पुरोहित ‘कागद’

एक माड़ो सपनो

मदन गोपाल लढ़ा

हिचकी को बुलावो

हरिचरण अहरवाल 'निर्दोष'

आंतरो

गंगासागर सारस्वत

सजा

मोनिका गौड़

सुपनो

सुनील कुमार लोहमरोड़ ‘सोनू’

तार-तार सपना

रचना शेखावत

सुपनौ

जनकराज पारीक

सुपना

विनोद स्वामी

अेक माड़ो सुपनो

मदन गोपाल लढ़ा

तू नईं आई

कृष्ण बृहस्पति

कचायत

पूनमचंद गोदारा

मुट्ठी भर सुपना

गौतम अरोड़ा

सुपनां

शंभुदान मेहडू

एक चोरंगी जिनगानी

रामस्वरूप ‘परेश’

लो, सूंपूं हूं थांनै

मीठेश निर्मोही

सुपनौ अर जथारथ

वाज़िद हसन काजी

रठ में ठर

सत्यदीप ‘अपनत्व’

रोज-रोज

मंगत बादल

राड़ भोभर बणावै

राजेश कुमार व्यास

सांप-सीढ़ी रौ गत्तौ

चन्द्र प्रकाश देवल

थे

सुशीला चनानी

सांची बेटी बण जाऊॅं

मंजू किशोर 'रश्मि'

गीतड़ल्यौ

जबरनाथ पुरोहित

जीवण

राजेश कुमार व्यास