थारा सपनां में औसरतौ धारोधार

म्हैं तिरसाई धरणी रौ

काळौ मेघ व्हेतौ!

बावड़तौ मगरां सूं

थोथी थळियां रै मंझार

थांरी जागती इछावां सपना सारतौ...

अबै तो लीरा-लीर व्हेगी

म्हारी हूंस

अर मंगसी पड़गी

चंवरी चढियै चुड़लै री मजीठ!

पण हीचकतां-आफळतां

आपां आभै अर पाताळ बिच्चै

सोध लीवी पिरथमी!

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत काव्यांक, अंक - 4 जुलाई 1998 ,
  • सिरजक : नंद भारद्वाज ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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