धरती पर कवितावां

पृथ्वी, दुनिया, जगत।

हमारे रहने की जगह। यह भी कह सकते हैं कि यह है हमारे अस्तित्व का गोल चबूतरा! प्रस्तुत चयन में पृथ्वी को कविता-प्रसंग में उतारती अभिव्यक्तियों का संकलन किया गया है।

कविता104

धरती काती प्रीत

राजूराम बिजारणियां

आभै उतरी प्रीत

राजूराम बिजारणियां

भटकाव

मदन सैनी

हिलमिल चालो

त्रिलोक शर्मा

बै अर आपां

निशान्त

चावना

वाज़िद हसन काजी

जैसलमेर

चंद्रशेखर अरोड़ा

माटी

देवीलाल महिया

गुलेळ

हरीश सुवासिया

रिस्तौ

केशव पथिक आचार्य

झूठ री जड़

गजेसिंह राजपुरोहित

सोध लीवी पिरथमी

नंद भारद्वाज

माटी रा रंगरेज

रेवतदान कल्पित

अगनी मंतर

भगवती लाल व्यास

रेत

प्रेमलता सोनी

इळा री गळाई

चन्द्र प्रकाश देवल

धरती रो करज

कृष्णा सिन्हा

आसान कोनी

सुमन पड़िहार

धरती रो पग भारी

त्रिलोक गोयल

जीबो

गौरीशंकर 'कमलेश'

हथियार अर थारी कूंख

अर्जुन देव चारण

धरती नो धणी

जगमालसिंह सिसोदिया

काळ

कन्हैयालाल सेठिया

पराई भोम

गोरधन सिंह शेखावत

मारग री हूंस

चन्द्र प्रकाश देवल

अे दुनियां आधी

संजय पुरोहित

स्यात यूं मुळकै

सतीश छिम्पा

आस

सुमन पड़िहार

मारग री मौत

चन्द्र प्रकाश देवल

सपनो

गोरधन सिंह शेखावत

माँ री हथेळी पर

संदीप 'निर्भय'

जड़

ओम अंकुर

तिरस सागै जीवणो

रेणुका व्यास 'नीलम'

तिणकलो

निशान्त

मजूर

प्रियंका भारद्वाज

देव करै धरती रखवाळी

अस्त अली खां मलकांण

सरणार्थी कैंप

प्रियंका भारद्वाज

माटी

रचना शेखावत

निसतारौ

चन्द्र प्रकाश देवल

खेत री बां जमीन

गौरी शंकर निम्मीवाल

दुनिया नौ मोटौ आदमी

भविष्यदत्त ‘भविष्य’

धोरां री धरती

शिवराज भारतीय

घमलै रा फूल

मोहम्मद सदीक