धरती पर कवितावां

पृथ्वी, दुनिया, जगत।

हमारे रहने की जगह। यह भी कह सकते हैं कि यह है हमारे अस्तित्व का गोल चबूतरा! प्रस्तुत चयन में पृथ्वी को कविता-प्रसंग में उतारती अभिव्यक्तियों का संकलन किया गया है।

कविता123

धरती काती प्रीत

राजूराम बिजारणियां

आभै उतरी प्रीत

राजूराम बिजारणियां

काळ

कन्हैयालाल सेठिया

म्हारौ राजस्थान

रामाराम चौधरी

भटकाव

मदन सैनी

झूठ री जड़

गजेसिंह राजपुरोहित

धरती'र भासा!

कन्हैयालाल सेठिया

धरती मा

भंवर कसाना

धरती रो धणी

दूदसिंह काठात

किण नै दोस देवां

पुरुषोत्तम छंगाणी

मोट्यार मौसम

प्रेमजी ‘प्रेम’

फगत दरखत

भंवरसिंह सामौर

ताणियोड़ी भरत माथै

मीठेश निर्मोही

बता बेकळू

ओम पुरोहित ‘कागद’

धुंवाड़ौ

उपेन्द्र अणु

बीं सागण भौम

मदन गोपाल लढ़ा

धरती री मुळक

रमेश मयंक

जागो और जगाओ

कल्याणसिंह राजावत

थळवट रौ उमराव

सुमन बिस्सा

चतराम

जितेन्द्र निर्मोही

पराई भोम

गोरधन सिंह शेखावत

मारग री हूंस

चन्द्र प्रकाश देवल

अे दुनियां आधी

संजय पुरोहित

स्यात यूं मुळकै

सतीश छिम्पा

आस

सुमन पड़िहार

धरती रो पग भारी

त्रिलोक गोयल

जीबो

गौरीशंकर 'कमलेश'

हथियार अर थारी कूंख

अर्जुन देव चारण

जतन

ओमप्रकाश गर्ग 'मधुप'

धरती नो धणी

जगमालसिंह सिसोदिया

मारग री मौत

चन्द्र प्रकाश देवल

सपनो

गोरधन सिंह शेखावत

माँ री हथेळी पर

संदीप 'निर्भय'

जड़

ओम अंकुर

तिरस सागै जीवणो

रेणुका व्यास 'नीलम'

जातरा

प्रेमजी ‘प्रेम’

तिणकलो

निशान्त

मजूर

प्रियंका भारद्वाज

देव करै धरती रखवाळी

अस्त अली खां मलकांण

पैलड़ी जीत

ओमप्रकाश गर्ग 'मधुप'

धरती री भासा

मोहन आलोक

सरणार्थी कैंप

प्रियंका भारद्वाज