धरती पर कवितावां

पृथ्वी, दुनिया, जगत।

हमारे रहने की जगह। यह भी कह सकते हैं कि यह है हमारे अस्तित्व का गोल चबूतरा! प्रस्तुत चयन में पृथ्वी को कविता-प्रसंग में उतारती अभिव्यक्तियों का संकलन किया गया है।

कविता138

धरती काती प्रीत

राजूराम बिजारणियां

आभै उतरी प्रीत

राजूराम बिजारणियां

म्हारौ राजस्थान

रामाराम चौधरी

काळ

कन्हैयालाल सेठिया

माटी थनै बोलणौ पड़सी

रेवतदान चारण कल्पित

धरती'र भासा!

कन्हैयालाल सेठिया

भटकाव

मदन सैनी

झूठ री जड़

गजेसिंह राजपुरोहित

कीं नान्ही कवितावां (क्षणिका)

घनश्याम नाथ कच्छावा

पछै पछै रै उणियार

चन्द्र प्रकाश देवल

तुणगल्यो अर बूंद

गौरीशंकर 'कमलेश'

म्हारा पिताजी

गौरीशंकर निमिवाळ

आ रूसी धूड़

अन्ना अख्मातोवा

पराई भोम

गोरधन सिंह शेखावत

मारग री हूंस

चन्द्र प्रकाश देवल

अे दुनियां आधी

संजय पुरोहित

स्यात यूं मुळकै

सतीश छिम्पा

आस

सुमन पड़िहार

धरती मा

भंवर कसाना

धरती रो धणी

दूदसिंह काठात

किण नै दोस देवां

पुरुषोत्तम छंगाणी

मोट्यार मौसम

प्रेमजी ‘प्रेम’

फगत दरखत

भंवरसिंह सामौर

ताणियोड़ी भरत माथै

मीठेश निर्मोही

बता बेकळू

ओम पुरोहित ‘कागद’

थारै हुवण री

सांवर दइया

धुंवाड़ौ

उपेन्द्र अणु

बीं सागण भौम

मदन गोपाल लढ़ा

धरती री मुळक

रमेश मयंक

करसाणी म्हारा गांव री

फतहलाल गुर्जर 'अनोखा'

जागो और जगाओ

कल्याणसिंह राजावत

थळवट रौ उमराव

सुमन बिस्सा

चतराम

जितेन्द्र निर्मोही

गा

मनोज कुमार स्वामी

पृथ्वी

मालचंद तिवाड़ी

मिनख रा चाळा

इन्द्रा व्यास

धरती रो काया कलप

सत्येन जोशी

धरती रो पग भारी

त्रिलोक गोयल

जीबो

गौरीशंकर 'कमलेश'

हथियार अर थारी कूंख

अर्जुनदेव चारण

जतन

ओमप्रकाश गर्ग 'मधुप'

इण धरती रै ऊजळ आंगण

महेंद्रसिंह छायण

धरती नो धणी

जगमालसिंह सिसोदिया

मारग री मौत

चन्द्र प्रकाश देवल