धरती पर कवितावां

पृथ्वी, दुनिया, जगत।

हमारे रहने की जगह। यह भी कह सकते हैं कि यह है हमारे अस्तित्व का गोल चबूतरा! प्रस्तुत चयन में पृथ्वी को कविता-प्रसंग में उतारती अभिव्यक्तियों का संकलन किया गया है।

कविता109

धरती काती प्रीत

राजूराम बिजारणियां

आभै उतरी प्रीत

राजूराम बिजारणियां

म्हारौ राजस्थान

रामाराम चौधरी

धरती री भासा

कन्हैयालाल सेठिया

भटकाव

मदन सैनी

झूठ री जड़

गजेसिंह राजपुरोहित

कीं नान्ही कवितावां (क्षणिका)

घनश्याम नाथ कच्छावा

धरती मा

भंवर कसाना

धरती रो धणी

दूदसिंह काठात

किण नै दोस देवां

पुरुषोत्तम छंगाणी

फगत दरखत

भंवरसिंह सामौर

ताणियोड़ी भरत माथै

मीठेश निर्मोही

बता बेकळू

ओम पुरोहित ‘कागद’

धुंवाड़ौ

उपेन्द्र अणु

बीं सागण भौम

मदन गोपाल लढ़ा

धरती री मुळक

रमेश मयंक

थळवट रौ उमराव

सुमन बिस्सा

चतराम

जितेन्द्र निर्मोही

गा

मनोज कुमार स्वामी

पृथ्वी

मालचंद तिवाड़ी

मिनख रा चाळा

इन्द्रा व्यास

धरती रो काया कलप

सत्येन जोशी

माटी थनै बोलणौ पड़सी

रेवतदान चारण कल्पित

पछै पछै रै उणियार

चन्द्र प्रकाश देवल

तुणगल्यो अर बूंद

गौरीशंकर 'कमलेश'

म्हारा पिताजी

गौरी शंकर निम्मीवाल

धरती रो पग भारी

त्रिलोक गोयल

जीबो

गौरीशंकर 'कमलेश'

हथियार अर थारी कूंख

अर्जुन देव चारण

धरती नो धणी

जगमालसिंह सिसोदिया

काळ

कन्हैयालाल सेठिया

पराई भोम

गोरधन सिंह शेखावत

मारग री हूंस

चन्द्र प्रकाश देवल

अे दुनियां आधी

संजय पुरोहित

स्यात यूं मुळकै

सतीश छिम्पा

आस

सुमन पड़िहार

मारग री मौत

चन्द्र प्रकाश देवल

सपनो

गोरधन सिंह शेखावत

माँ री हथेळी पर

संदीप 'निर्भय'

जड़

ओम अंकुर

तिरस सागै जीवणो

रेणुका व्यास 'नीलम'

तिणकलो

निशान्त

मजूर

प्रियंका भारद्वाज