धरती पर गीत

पृथ्वी, दुनिया, जगत।

हमारे रहने की जगह। यह भी कह सकते हैं कि यह है हमारे अस्तित्व का गोल चबूतरा! प्रस्तुत चयन में पृथ्वी को कविता-प्रसंग में उतारती अभिव्यक्तियों का संकलन किया गया है।

गीत17

धरती धोरां री

कन्हैयालाल सेठिया

माटी रौ हेलौ

रेवतदान चारण कल्पित

धरती रो हियो जगादे

मेघराज मुकुल

म्हारौ राजस्थान जी

कालूराम प्रजापति 'कमल'

बरस बादळा, यार भायला!

रामकरण प्रभाती

सूरज सींया मरग्यो

विश्वामित्र दाधीच

धरती रो सिणगार

मेघराज मुकुल

सात जुगां रौ लेखौ

रेवतदान चारण कल्पित

बन मोरिया रे

कृष्ण बिहारी ‘भारतीय’

कबूतराँ को जोड़ो

रघुराजसिंह हाड़ा

हाथ बढा तू मानवी

जयकृष्ण शर्मा

लुळ-लुळ करो सलाम

मोहम्मद सदीक

आयो इंगरेज मुलक रै ऊपर

बांकीदास आशिया

पर्यावरण संरक्षण

ओमप्रकाश सरगरा 'अंकुर'

दाग्याँ जा

प्रेम शास्त्री