सुपना पर ग़ज़ल

सुप्तावस्था के विभिन्न

चरणों में अनैच्छिक रूप से प्रकट होने वाले दृश्य, भाव और उत्तेजना को सामूहिक रूप से स्वप्न कहा जाता है। स्वप्न के प्रति मानव में एक आदिम जिज्ञासा रही है और विभिन्न संस्कृतियों ने अपनी अवधारणाएँ विकसित की हैं। प्रस्तुत चयन में स्वप्न को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

ग़ज़ल7

दे दाता बादळ पूरो

राजूराम बिजारणियां

घणो काळज्यो खायो

शांति भारद्वाज 'राकेश'

ग़ज़ल

शांति भारद्वाज 'राकेश'

प्रीत मनड़ै में जगा

अब्दुल समद ‘राही’

विडरंगा सपना है आंख्यां रो साच

रामेश्वर दयाल श्रीमाली