आँख पर कवितावां

आँखें पाँच ज्ञानेंद्रियों

में से एक हैं। दृश्य में संसार व्याप्त है। इस विपुल व्याप्ति में अपने विविध पर्यायों—लोचन, अक्षि, नैन, अम्बक, नयन, नेत्र, चक्षु, दृग, विलोचन, दृष्टि, अक्षि, दीदा, चख और अपने कृत्यों की अदाओं-अदावतों के साथ आँखें हर युग में कवियों को अपनी ओर आकर्षित करती रही हैं। नज़र, निगाह और दृष्टि के अभिप्राय में उनकी व्याप्ति और विराट हो उठती है।

कविता52

सपना

प्रियंका भारद्वाज

आंख्यां खोलो रै

हीरालाल सास्त्री

फरूकण लागी है डावी आंख

मीठेश निर्मोही

आंख्यां

त्रिभुवन

गांव अर टाबर

मदन सैनी

दीठ

शैलेन्द्र सिंह नूंदड़ा

नैणां रा बोल

वाज़िद हसन काजी

सतरंगी काया

संजय आचार्य 'वरुण'

प्रीत

मदन गोपाल लढ़ा

इच्छा नो घोड़ो

विजय गिरि गोस्वामी 'काव्यदीप'

खतावणी

चन्द्र प्रकाश देवल

जागती आंख्या मायं

योगेश व्यास राजस्थानी

खोल दी प्रोळ

कमल रंगा

पोती

हरीश हैरी

सुण साथी म्हारा

सत्यदीप ‘अपनत्व’

कद

प्रियंका भारद्वाज

आंधी हुयोड़ी रात

राजेश कुमार व्यास

भासा रै बिना

चन्द्र प्रकाश देवल

नान्ही कवितावां

लक्ष्मीनारायण रंगा

थांरी दीठ

शंभुदान मेहडू

ओ कुण लुक-छिप आवै

रावत सारस्वत

बसंत कद आवसी

सत्यदीप ‘अपनत्व’

दीठ रो आंतरो

रमेश मयंक

घूघरा

गौरीशंकर 'कमलेश'

थूं अर म्हैं

लक्ष्मीनारायण रंगा

काळ

मदन सैनी

अकथ कथा

संजय पुरोहित

आंख

अशोक जोशी ‘क्रांत’

मारी आँखे

रवि भट्ट

दरसाव

संजय कुमार नाहटा 'संजू'

चसमौ

चन्द्र प्रकाश देवल

मून धार्‌यां बैठी रैयी बा

गौरी शंकर निम्मीवाल

आखर बोल : आखर बांच

हरीश भादानी

सुमरण रा बोल

चन्द्र प्रकाश देवल

थारी आफळ

नंद भारद्वाज

हेत रा रंग

मदन गोपाल लढ़ा

थारी निजरां

हरीश सुवासिया

दौरो घणो जीणो

कृष्णा आचार्य

सपना

अर्जुन देव चारण

एक सूं मत सारो

कृष्ण बृहस्पति

बापू रौ चसमौ

चन्द्र प्रकाश देवल

मिनख री निजर

कन्हैयालाल ‘वक्र’