आँख पर ग़ज़ल

आँखें पाँच ज्ञानेंद्रियों

में से एक हैं। दृश्य में संसार व्याप्त है। इस विपुल व्याप्ति में अपने विविध पर्यायों—लोचन, अक्षि, नैन, अम्बक, नयन, नेत्र, चक्षु, दृग, विलोचन, दृष्टि, अक्षि, दीदा, चख और अपने कृत्यों की अदाओं-अदावतों के साथ आँखें हर युग में कवियों को अपनी ओर आकर्षित करती रही हैं। नज़र, निगाह और दृष्टि के अभिप्राय में उनकी व्याप्ति और विराट हो उठती है।

ग़ज़ल10

सबदां री शमशीर परखजै

रतन सिंह चांपावत

प्रीत मनड़ै में जगा

अब्दुल समद ‘राही’

विडरंगा सपना है आंख्यां रो साच

रामेश्वर दयाल श्रीमाली

नैंण

रजा मोहम्मद खान

आख्यां माथै हथाळी

चंद्रशेखर अरोड़ा

गज़ल

सत्यदीप ‘अपनत्व’