सून्नै नै ताकतो म्है,

म्हनै सून्नै,

अेक बेनामो समन्ध

चाण'कै,

चाल पड़ै व्है

पून रा थपेड़ा,

लागै,

घात कर रह्या हूवै

म्हारै अस्तित्व पर,

गळगळौ म्है पण

दीदा फेरूं अनन्त पर,

समै बायरो,

निशा रो आगमन, प्रस्थाण,

म्हारो अटल आचरण,

पाछो बो ई'ज दरसाव।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : संजय कुमार नाहटा 'संजू' ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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