समै पर कवितावां

समय अनुभव का सातत्य

है, जिसमें घटनाएँ भविष्य से वर्तमान में गुज़रती हुई भूत की ओर गमन करती हैं। धर्म, दर्शन और विज्ञान में समय प्रमुख अध्ययन का विषय रहा है। भारतीय दर्शन में ब्रह्मांड के लगातार सृजन, विनाश और पुनर्सृजन के कालचक्र से गुज़रते रहने की परिकल्पना की गई है। प्रस्तुत चयन में समय विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

कविता216

ओळूं

आईदान सिंह भाटी

आ बैठ बात करां - 1

रामस्वरूप किसान

काळ

मणि मधुकर

समै रो संताप

नीतू शर्मा

संबंधा रा डोरा

अनुश्री राठौड़

बगत

कन्हैयालाल सेठिया

बात कोनी

उषा राजश्री राठौड़

बूढ़ी डोकरी

पवन सिहाग 'अनाम'

थारी अर म्हारी बात

आईदान सिंह भाटी

काळ

कन्हैयालाल सेठिया

घर अर फळसौ

आईदान सिंह भाटी

रंग विहूणौ

महेंद्रसिंह छायण

बीज नै उगणो पड़सी

भीम पांडिया

घट्टी

मुकुट मणिराज

काळ

किशन ‘प्रणय’

मांय तौ नागा ई

सांवर दइया

दिन

मोहन आलोक

डूंज-बायरा

भगवती लाल व्यास

गत-पत

मणि मधुकर

घणो व्हैग्यो है भाईड़ा

विनोद सोमानी 'हंस'

हित्यारा कांईठा कुण?

लेस्ली पिंकनी हिल

मारग

चन्द्र प्रकाश देवल

वै म्हारा दोस्त है

मालेक हद्दाद

इकडंकी मारग

चन्द्र प्रकाश देवल

काळ सूं सवाल

गोरधन सिंह शेखावत

मनवार

हरीश बी. शर्मा

रोग

विनोद सोमानी 'हंस'

कवी

रेम्को कैंपर्ट

पिंड पाळै मन

ओम पुरोहित ‘कागद’

टैम निकल जावै ला

बाबूलाल संखलेचा

काळ रा तीन ठांव

नन्दकिशोर चतुर्वेदी

आग नफरत री बुझाओ

गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

ओ कुण

मोहम्मद सदीक

बिरवा इयै बगत रा

नवनीत पाण्डे

समै रौ रींछ

नारायण सिंह भाटी

बगत री नदी

इरशाद अज़ीज़

घर बाबत

नीरज दइया

लीला हुसार

निकोलाइ अेस्येयेव

कदमताळ

गोरधन सिंह शेखावत

औ जमारौ

सुधीर राखेचा

ओळ्यूं

भारती पुरोहित

अजै जूझणो पड़सी

मोहम्मद सदीक