समै पर कवितावां

समय अनुभव का सातत्य

है, जिसमें घटनाएँ भविष्य से वर्तमान में गुज़रती हुई भूत की ओर गमन करती हैं। धर्म, दर्शन और विज्ञान में समय प्रमुख अध्ययन का विषय रहा है। भारतीय दर्शन में ब्रह्मांड के लगातार सृजन, विनाश और पुनर्सृजन के कालचक्र से गुज़रते रहने की परिकल्पना की गई है। प्रस्तुत चयन में समय विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

कविता147

ओळूं

आईदान सिंह भाटी

काळ

मणि मधुकर

काळ

कन्हैयालाल सेठिया

थारी अर म्हारी बात

आईदान सिंह भाटी

बूढ़ी डोकरी

पवन सिहाग 'अनाम'

संबंधा रा डोरा

अनुश्री राठौड़

बात कोनी

उषा राजश्री राठौड़

बीज नै उगणो पड़सी

भीम पांडिया

काळ

किशन ‘प्रणय’

घट्टी

मुकुट मणिराज

रंग विहूणौ

महेंद्रसिंह छायण

घर अर फळसौ

आईदान सिंह भाटी

आंधौजुग

शंभुदान मेहडू

पतियारो

नवनीत पाण्डे

आखर

अर्जुन देव चारण

जिनगाणी

श्याम सुन्दर टेलर

बखत रौ मोल

शकुंतला अग्रवाल 'शकुन'

हाड़ी बाढतां

सत्यनारायण सोनी

कळजुग

नीतू शर्मा

हवेली

रोशन बाफना

जोर

प्रेमजी ‘प्रेम’

काल-चक्र

मोहन आलोक

बगत बगत री बात

हरिदास हर्ष

टैम टैम नीं वात

राम पंचाल भारतीय

परख

मातुसिंह राठौड़

पसेड़ी एटली होड़

मोहन दास वैष्णव

मौसम

गोरधन सिंह शेखावत

बगत

गोपाल जैन

सज रैया है कैक्टस

किशोर कुमार निर्वाण

बगत

कन्हैयालाल सेठिया

काळौ घोड़ो

मणि मधुकर

ओ मानखो बीत्यो जावै

मुखराम माकड़ ‘माहिर’

बगत

हरि शंकर आचार्य

पाणी रौ मोल

नाथूसिंह इंदा

कियां भागतो काळ

राजेश कुमार व्यास

वगत अणमोल

रोशन बाफना

बगत

कुमार अजय

दिन अर रात

राजदीप सिंह इन्दा

बखत रो मर्सियो

सत्यनारायण व्यास

संभल जा

नगेन्द्र नारायण किराडू

काळ

चंद्रशेखर अरोड़ा

समै रो फेर

उगमसिंह राजपुरोहित 'दिलीप'

समै रो फेर

दीपचन्द सुथार

गढ़ बोल्यो

गोरधन सिंह शेखावत

बगत

सुधीर राखेचा