समै पर कवितावां

समय अनुभव का सातत्य

है, जिसमें घटनाएँ भविष्य से वर्तमान में गुज़रती हुई भूत की ओर गमन करती हैं। धर्म, दर्शन और विज्ञान में समय प्रमुख अध्ययन का विषय रहा है। भारतीय दर्शन में ब्रह्मांड के लगातार सृजन, विनाश और पुनर्सृजन के कालचक्र से गुज़रते रहने की परिकल्पना की गई है। प्रस्तुत चयन में समय विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

कविता185

आ बैठ बात करां - 1

रामस्वरूप किसान

समै रो संताप

नीतू शर्मा

काळ

मणि मधुकर

ओळूं

आईदान सिंह भाटी

काळ

किशन ‘प्रणय’

बीज नै उगणो पड़सी

भीम पांडिया

रंग विहूणौ

महेंद्रसिंह छायण

घट्टी

मुकुट मणिराज

थारी अर म्हारी बात

आईदान सिंह भाटी

संबंधा रा डोरा

अनुश्री राठौड़

बात कोनी

उषा राजश्री राठौड़

बूढ़ी डोकरी

पवन सिहाग 'अनाम'

काळ

कन्हैयालाल सेठिया

घर अर फळसौ

आईदान सिंह भाटी

मांनी जता मिनख

चंद्रशेखर अरोड़ा

बगतसर चालां घरै

सुरेन्द्र सुन्दरम

मा निषाद

रचना शेखावत

बै सागी बातां

संदीप 'निर्भय'

खुली आंख रा सुपना

नरेंद्र व्यास

घड़ी ना कांटा

नरेन्द्रपाल जैन

आंख्यां

इरशाद अज़ीज़

जात्रा

अर्जुन अरविन्द

वगत ई वगतबायरौ है

नवनीत पाण्डे

दरसाव

संजय कुमार नाहटा 'संजू'

दुपारौ

भंवर भादानी

बखत रौ मोल

शकुंतला अग्रवाल 'शकुन'

छिण जको म्हारो

गोरधन सिंह शेखावत

वगत घड़िया उणियारा

सत्यदेव संवितेन्द्र

बगत री बात

ज़ेबा रशीद

चेतौ

गोरधन सिंह शेखावत

बगत रो सागो

नमामीशंकर आचार्य

बगत रौ हेलो

अर्जुनसिंह शेखावत

आज री नारी

रमेश मयंक

कविता खोलै किंवाड़

राजेश कुमार व्यास

सुळ सुळियो

मोहम्मद सदीक

बदळग्यो बगत

गौरीशंकर प्रजापत

रिवाज री बुगची

सुमन पड़िहार

मिनख वास्ते

सांवर दइया

हाड़ी बाढतां

सत्यनारायण सोनी

कळजुग

नीतू शर्मा

हवेली

रोशन बाफना

जोर

प्रेमजी ‘प्रेम’

काल-चक्र

मोहन आलोक

बगत बगत री बात

हरिदास हर्ष