समै पर कवितावां

समय अनुभव का सातत्य

है, जिसमें घटनाएँ भविष्य से वर्तमान में गुज़रती हुई भूत की ओर गमन करती हैं। धर्म, दर्शन और विज्ञान में समय प्रमुख अध्ययन का विषय रहा है। भारतीय दर्शन में ब्रह्मांड के लगातार सृजन, विनाश और पुनर्सृजन के कालचक्र से गुज़रते रहने की परिकल्पना की गई है। प्रस्तुत चयन में समय विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

कविता188

आ बैठ बात करां - 1

रामस्वरूप किसान

काळ

मणि मधुकर

समै रो संताप

नीतू शर्मा

ओळूं

आईदान सिंह भाटी

घट्टी

मुकुट मणिराज

रंग विहूणौ

महेंद्रसिंह छायण

बीज नै उगणो पड़सी

भीम पांडिया

काळ

किशन ‘प्रणय’

संबंधा रा डोरा

अनुश्री राठौड़

बात कोनी

उषा राजश्री राठौड़

बूढ़ी डोकरी

पवन सिहाग 'अनाम'

थारी अर म्हारी बात

आईदान सिंह भाटी

काळ

कन्हैयालाल सेठिया

घर अर फळसौ

आईदान सिंह भाटी

बाई

विनोद स्वामी

चेत मानखा चेत

मोहम्मद सदीक

ओ टूकड़ौ

रामस्वरूप किसान

मिनख रौ पगफेरौ

नंद भारद्वाज

बगत री बात

दीपचन्द सुथार

जात निसरगी

किशोर कल्पनाकान्त

कळजुग नो ज़मारो आव्यौ

राम पंचाल भारतीय

कवि अर आगीवाण

तेजसिंह जोधा

आभै रै उण पार

शंकरसिंह राजपुरोहित

नरकवाड़ौ

मणि मधुकर

अघोरी काळ

कन्हैयालाल सेठिया

अड़ अर बगत सूं लड़

मनोज पुरोहित 'अनंत'

जुग रो हेलो

कल्याणसिंह राजावत

बगत

देवकरण जोशी 'दीपक'

आसरो

प्रभुदयाल मोठसरा

तौले जूण

संदीप 'निर्भय'

इतिहास-पख

पारस अरोड़ा

धुंवाड़ौ

उपेन्द्र अणु

कद मिलसी आजादी

शंकर दान चारण

गंदी हवा

चंद्रशेखर अरोड़ा

उठ बटाऊ

नमामीशंकर आचार्य

अंगूठो

नीरज दइया

म्हैं नीं

तेजसिंह जोधा

काळ

गोरधन सिंह शेखावत

सुख सागर री लकड़ी

मालचंद तिवाड़ी

घर

संजू श्रीमाली

अगवाणी

सत्यप्रकाश जोशी

उल्थो

सत्येंद्र चारण

काल थे खुद

सांवर दइया

टेम

जितेन्द्र निर्मोही