आजकाल

दिनूगै उठतां पांण

फारिग होवां तो

कूई में बाजै खरळाट

कोई बीसेक लीटर पाणी रो।

पैली

टाबर तो टाबर

बूढा-डोकरा तकात

दिसा फरागत सारू

जावता हा धोरां मांय

अर कोरी रेत में

कर लेवता हा

गऊ खोजिया!

स्रोत
  • सिरजक : सत्यनारायण सोनी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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