अेक जमानो हो,

जद लोगां नै लखावतो कै वै मिनख है

अब कीं लखावै कोनी!

अबै फुटरा कोनी लागै फुटरा,

बिडरूप झिरोखां सूं झांकण लागग्यो रूप-सरूप,

अबै तो पीड़ कोनी लखावै,

दोरो सोरो लागै

आगै लागतो, आपां जिनस कोनी हां,

कोनी हां जिनावर सींग-पूंछ वाळा,

आपां मिनख हां!

जमानो केई सबक सिखायग्यो

लुगायां नै लेवता बेचता—

अर किराया माथै उठावता लोग,

ना खुद लागै मिनख,

ना वै लुगायां लागै नारी-रतन!

गुलाम अर गरीब कमतरिया ई,

जुड़ाव सूं छिटक्योड़ा लागै जिनस जैड़ा,

अर रोजीना रो इकसार जीवण जीवता

नींद, जीमण अर भोग-भजन करता

आपां सगळा होयग्या हां जिनावर—

आदम जिनावर!

अबै ना आपणै कनै

हरख-पीड़ है,

ना भासा,

आपां नै लखावै कोनी के आपां हां!

स्रोत
  • पोथी : निजराणो ,
  • सिरजक : सत्यप्रकाश जोशी ,
  • संपादक : चेतन स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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