(अेक)

च्यारूं कानी हरियाळी री ओढणी 
ओढ्यां आवै सावण।

बूंद-बूंद बिरखा 
बिरखा वाळा बादळ 
बादळ जितरा ऊंचा मगरा 
मगरां रो जंगळ 
जंगळ साथै 
तळाव, नदी, नाळा अर झील।

झील रै वणी कनारै 
ऊगतो सूरज 
सूरज साथै सुपनो 
इयां आवै सावण। 

(दोय) 

घटाटोप अंधारो 
चिलकती बिजळी यूं तडै 
जियां फोटू खींचतां मांडै 
धरती रो चितराम 
इणरै साथै झमाझम पाणी 
इयां आवै सावण।
स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : शिवदान सिंह जोलावास ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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