अमूझो ढोंवती

अर सरणाटा सैंवती

हवेली री

तोड़ सूनवाड़

झड़काय रज्जी

धोय-पूंछ कबूतरां री बींट

करा’र रंग रोगन

चमचम

चमकाय दीनी हवेली!

खोल दी प्रोळ

हवेली री

पर्यटकां नै

देखण-परोटण नै

दादै रै पोते

अर दादै री

सूनी-सूनी आंख्यां

देख रैयी है

बा हवेली...

हवेली।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : कमल रंगा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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