सळ पड़्योड़ै

मूंढै माथै

सूख गयो नैणां रो पाणी!

अंधेरै सूं घिर्योड़ो

काळजो लियां अर

भूख री लाय में तपतो

सूनै मारग

डगमगातो डग भरतो

छाला पड़्या

पगथळी मांय...

बुझ्योड़ै दीयै री दाईं

मनड़ो लेय’र

आस रो ऊंडो

कुवो खोद्यो है...

दो हाथ मजूरी खातर

आखी दुनिया में घूमतो रैयो

दो जूण रै जीवण में

कित्तो दौरो जीवणो है!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : कृष्णा आचार्य
जुड़्योड़ा विसै